*ओ३म्*
महाभारत पर लिखना एक दु:साहस पूर्ण कार्य है, फिर भी यह प्रयास है अपने स्वाध्याय को संकलित कर आप तक पहुँचाने का।
*महाभारत से-1*
महाभारत का नाम सुनते ही इतिहास के उस भीषण युद्ध का दृश्य मस्तिष्क पटल पर पदार्पण कर जाता है जिसमें बड़े-बड़े योद्धा हाथों में शस्त्र लिए एक दूसरे को मरने मारने पर आरूढ़ थे, मेरे अपने ही मेरे शत्रु है।
कुछ तो इतिहासकारों और फिर कुछ कथाकारों ने महाभारत के उन प्रसंगों को ज्यादा कुप्रसिद्ध किया जिसमें काम, द्वेष, मक्कारी, छल-कपट और मरना-मारना था। इसलिए ही घर में पति-पत्नी, बच्चों या फिर अपनों से हुई छोटी-मोटी कलह या नोकझोंक को सामान्य भाषा में कह देते हैं क्या महाभारत मचा रखा है।
पीछे के अनेक वर्षों से तो यह प्रचलन में आ गया कि महाभारत जैसे ग्रंथ को पढ़ना तो दूर घर में भी नहीं रखना चाहिए, इससे घर में अशांति होती है क्योंकि ऐसा ही बताया गया।
आभार है उन धारावाहिक निर्माताओं का जिन्होंने महाभारत धारावाहिक बनाया, जिसे घर-घर में देखा भी गया
जो भी हो सत्य को ग्रहण करने और असत्य को त्यागने में सदैव तत्पर रहना चाहिए। इसका निर्णय अपनी बुद्धि को तर्कशील बनाकर ही किया जा सकता है। अगर परंपराओं में रूढ़िवादिता और असत्य का समावेश हो जाए तो उनसे विमुक्त होना ही चाहिए, महाभारत ऐसी ही शिक्षा देता है। कृष्ण को छोड़कर सभी चरित्र अनैतिकता, असत्य, काम और अधिकार के नाम पर कपटता तथा असहाय आदि बंधनों से ग्रसित ज्ञात होते हैं। यहाँ तक कि महायुवराज देवव्रत का बचपन गुरुकुलीय परंपरा में बिता, ऋषियों ने पालन पोषण किया, नीति-शास्त्रों और शस्त्रों के महारथी होने के बाद भी धर्म-धर्म करते उन्हें अनीति के ध्वजवाहकों का साथ देना पड़ा।
पिछली श्रृंखला रामायण पर थी, अगर रामायण और महाभारत की तुलना की जाए तो पाते हैं कि दोनों ही ग्रंथ इतिहास के ग्रंथ हैं। रामायण सूर्यवंशीय क्षत्रियों का वर्णन करता है तो महाभारत चंद्रवंशीय क्षत्रियों का।
दोनों ही ग्रंथ आर्याव्रत के गौरव ग्रंथ हैं, दोनों में अनेक समानताएं हैं और कुछेक भिन्नताएं भी। रामायण के पात्र आदर्श है और त्याग से पूजित हैं वही खलनायक रावण इत्यादि चारित्रिक दोष से पूरित। महाभारत में कौरवों और पांडवों में दोनों ओर अच्छे और बुरे पात्र हैं। हस्तिनापुर के कुल में विदुर ही ऐसे दिखाई देते हैं जिन्होंने नीति तथा शास्त्र को नहीं छोड़ा।
रामायण में करुणा, भावुकता, त्याग और संयम है तो महाभारत में द्वेष, कटुता, छल कपट, धूर्तता है उग्रता का तांडव है। रामायण को पढ़ने से जहाँ शांति करुणा का भाव आता है तो महाभारत को हाथ में लेते एक ओर वीरत्व और दूसरी ओर कौरवों के प्रति घृणा उत्पन्न होती है।
रामायण में जहाँ महावीर हनुमान जैसे स्वामीभक्त बिना लाग लपेट के कर्म और सेवा को मित्रता और भक्ति का आधार मानते हैं तो महाभारत में शकुनि जैसे लंपट धूर्तता और दुष्टता के जहर को अपनी विजय का शस्त्र मानते हैं। रामायण के प्रसंगों को कांड का रूप दिया गया है तो महाभारत के प्रसंग अध्याय को पर्व का नाम दिया गया है।
मुनि वाल्मीकि ने नारद से अपने प्रश्नों के उत्तर सुनकर रामायण काव्य लिखा जबकि ऋषि वेदव्यास महाभारत के स्वदृष्टा थे।
वैसे दोनों कालों के बारे में विद्वानों में मतभेद भी है, महाभारत काल को 5000 वर्ष के आसपास का ही बताया गया है। गणित ज्योतिषियों के अनुसार यह कलयुग के प्रारंभ का काल है जिसे ईसवी सन् से 3101 वर्ष पूर्व माना गया है, इस प्रकार अभी अर्थात् 2021 में 5122 वर्ष पूर्व, यानी 5000 वर्ष से एक शताब्दी अधिक।
दु:ख का विषय है, कुछ दूषित मनोभाव रखने वाले इतिहासकारों ने राम और लक्ष्मण को काल्पनिक बताया, यहाँ तक कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी अपनी पुस्तक 'गीता माता' की भूमिका में लिख दिया- "यह ऐतिहासिक युद्ध नहीं बल्कि मनुष्य के हृदय में उठने वाले द्वंद युद्धों को दर्शाता है।"
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें